नीम तेल का उपयोग कैसे करें: स्वास्थ्य और सौंदर्य के लिए सर्वश्रेष्ठ तरीके
नीम के वृक्ष के विभिन्न नाम -
हिन्दी - निम्व, नीम
संस्कृत - नीम, पिचुमद, तिक्त, पारीभद्र
बंगला - निमगछ
गुजराती - लिम्बडो
मराठी - कडनिम
कन्नड़ - वेडवेबु
तेलगु - वेपम मरम
फारसी - नेनवनिम, दरखत हक
अंग्रेजी - Nimb Tree
लैटिन - मेलिया आझाड़ीरेक्ट
यह वृक्ष वनस्पति जगत के मेलीऐसी कुल का सदस्य है।
नीम के वृक्ष सर्वत्र उपलब्ध रहते हैं यह बहुत विशाल वृक्ष होते हैं इनका तना पर्याप्त मोटा एवं काष्टिय होता है तने के ऊपर पाई जाने वाली छाल कृष्ण वर्ड की होती है यह स्थान स्थान पर फटी हुई होती है शाखाएं भी स्तब्ध के समान ही होती हैं इसकी पत्तियां संयुक्त प्रकार की होती हैं प्रत्येक संयुक्त पत्ती में एक लंबी दांडी रेकिस कहते है बाकी शेष भाग से मोटा होता है प्रत्येक रेकिस पर 6 से 11 जोड़ी पत्ती लगी होती हैं प्रत्येक कटान युक्त कैनर वाली तथा नुकीले शीर्ष वाली होती हैं पत्ती का शीर्ष कुछ मुड़ा हुआ होता है इसके पुष्प बसंत ऋतु में आते हैं जो सफेद छोटे तथा लगभग चमेली के पुष्पों के समान गंध वाले होते हैं फल छोटे अंडाकार प्रारंभ में हरे तथा पकने पर पीले हो जाते हैं इनका आकार प्रकार खिरनी के फलों जैसे ही होता है इन फलों को निंबोली कहते हैं प्रत्येक फल में एक बीज होता है बीज से संपीडन विधि द्वारा तेल प्राप्त किया जाता है जिसे नीम का तेल कहते हैं यह हल्के अथवा गहरी पीले रंग का तेल होता है या कट,उष्ण, क्रीम, कुष्ठ, वर्ण, वात, पित्त, अर्श, ज्वर, उदर रोग तथा रक्त विकार नाशक होता है अन्य तेलों के साथ यह चर्म रोग यकृत गंडमाला वर्ण तथा गलित कुष्ठ में भी अत्यधिक लाभ करता ईसमें गंधक का अंश होता है अतः गंधक से जिन्हें एलर्जी हो उन्हें इसका आंतरिक प्रयोग नहीं करना चाहिए इस तेल में मुख्य रूप से ओलिक लिनोलिक पामेटिक अमल होते हैं।
नीम के वृक्ष के इतने औषधीय गुण है कि इस वृक्ष को ही स्वास्थ्य की रक्षा करने वाला मान लिया गया है नीम की जड़ से लेकर फूल पत्तियां तक इसके सभी अंग विभिन्न प्रकार से औषधि के रूप में प्रयुक्त होते हैं इसी प्रकार से नीम के तेल का भी बहुत अधिक महत्व है यह तेल औषधि रूप से काम आने के साथ-साथ अन्य अनेक प्रयोग में भी काम लाया जाता है यहां पर हम नीम के तेल के बारे में चर्चा करेंगे आप नीम के तेल को अगर अंकित औषधीय प्रयोग कर सकते हैं अवश्य लाभ की प्राप्ति होगी।
फोड़े हो जाने पर -
कोई भी फोड़ा शरीर पर हो जाने की स्थिति में उसके चारों ओर नीम के तेल को हल्के से लगा देना चाहिए यदि वह फूट गया हो तो उसके मुख पर भी नीम का तेल लगा देना चाहिए ऐसा करने फोड़ा शीघ्र अच्छा हो जाता है।
आंगूलियों पर कुष्ठ का रोग उत्पन्न होने पर -
उंगलियों पर कुष्ठ रोग के प्रकट होते ही उन पर नीम का तेल लगाने से वह ठीक होने लगता है प्रयोग कुछ दिनों तक नित्य करना पड़ता है वैसे कुष्ठ रोगी को अपने स्नान के पानी में थोड़ा नीम का तेल डालकर स्नान करना चाहिए।
त्वचा को चमकाने हेतु -
लगभग दो मिली सरसों के तेल में तीन बूंद नीम का तेल मिलाकर उस तेल से संपूर्ण शरीर पर ठीक से मालिश कर ले इसके पश्चात 10 15 मिनट के बाद स्नान कर ले नित्य कुछ दिनों तक इस प्रयोग के करने से त्वचा साफ हो जाती।
कंठमाला रोग में -
गले में कंठ माला हो जाने पर यह प्रयोग करें एक कढ़ाई में थोड़ी सी तंबाकू शेक कर इसका चूर्ण बना ले उसे कपड़छन करके सरसों के तेल में मिला लें 50 ग्राम तेल में 50 ग्राम तंबाकू मिला अब कंठ माला पर पहले नीम का तेल हल्के से लगाए और फिर तंबाकू तथा सरसों के तेल में बने पेस्ट उसे पर हल्के से लगा दें इस प्रयोग से कंठ माला रोग में लाभ होता है।
अर्श रोग में -
अर्श के अंकुरों पर नीम का तेल हल्के से लगाने से वह सूखने लगते हैं और इस प्रकार मल त्याग के समय होने वाले कष्ट दूर हो जाता है।
पेट के कीड़ों को मारने हेतु -
पेट में कीड़े पड़ जाने की स्थिति में दो बूंद नीम का तेल बताशे में डाल कर लेना चाहिए ऊपर से गर्म गुना जल पी लेना चाहिए इस प्रयोग को से उदर के क्रीम नष्ट हो जाते है।
यकृत के सूजन -
लीवर पर सूजन आ जाने की स्थिति में छाती के दाहिने तरफ पसली के नीचे नीम का तेल हल्के से लगाने से लाभ होता है इस प्रयोग को दिन में दो बार करना हितकर होता है।
नीम के तेल का विशेष प्रयोग -
त्वचा के ऊपर दाद अथवा एकजीमा हो जाने की स्थिति में नीम के तेल का यह विशेष प्रयोग कर सकते हैं बकरी की थोड़ी सी मेगनियां ले और इन्हें धूप में सुखा लें इस प्रकार पीपल के वृक्ष के नीचे जो सूखे पत्ते पड़े होते हैं उनमें से थोड़े पत्ते एकत्र कर जलाकर उनकी राख बना ले अब सूखी हुई मेगानियों को लेकर महीन पीस ले कपड़े से छान कर अत्यंत महीन चूर्ण अलग कर ले इस चूर्ण में पीपल के पत्तों की राख मिला दे दोनों बराबर बराबर मिले इसमें अगर मेगनिया के चूर्ण की मात्रा अधिक हो जाती है तो कोई बात नहीं है किंतु पीपल के राख की मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए इस मिश्रण की थोड़ी सी मात्रा लेकर उसमें नीम का तेल मिलाकर दाद अथवा एकजीमें पर लगा दे इसे लगाकर 2 से 5 मिनट के लिए धूप दिखाएं इस प्रयोग के तीन दिन तक संपन्न करने से एक्जिमा या दाद दूर होने लगता है।
नीम के तेल के चमत्कारिक प्रयोग -
नीम के तेल के अनेक चमत्कारिक प्रयोग है जिनके द्वारा आपकी समस्याएं दूर होकर उत्पन्न कष्ट पीड़ा का शमन होता है यहां पर कुछ ऐसे ही प्रयोग के बारे में बताया जा रहा है -
- जिस व्यक्ति के दांत में दर्द हो रहा हो उसे एक कोरे कागज पर किसी भी दिन शुभ समय पर निम्नांकित यंत्र बना चाहिए इसमें जहां अमुक लिखा है वहां संबंधित व्यक्ति का नाम लिखना चाहिए इसके पश्चात इस पर नीम के तेल की दो बूंद डालकर अगरबत्ती का धुआं दिखाएं इसके बाद एक छोटी सी कील से नीम के तने में ठोक देना चाहिए इसके प्रभाव से दाढ़ का दर्द जाता रहता है यंत्र इस प्रकार है।
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