आइए जानते हैं तिल के तेल के खास फायदे जो आपको हर काम में मदद करेंगे।
तिल के तेल के विभिन्न नाम -
हिन्दी - तिल, तिल्ली
संस्कृत - तिल
बंगला - तिल
गुजराती - तल
मराठी - तिल
फारसी - कुंजद
अरबी - सिमसिम, समसम,
अंग्रेजी - Sesame या Gingelly
लेटिन - सिसेमम
यह वनस्पति जगत के पेडेलियसी कुल की सदस्य है।
तिल की खेती अति प्राचीन काल से भारत में की जाती रही है इसके पौधे 1 फीट से 3 फीट तक ऊंचे तथा एक वर्षीय होते हैं यह कोमल छुप होते हैं संपूर्ण पौधा रोमा वृत्त होता है
पौधे में एक प्रकार की हल्की सी दुर्गंध आती है पौधे पर यहां वहां फैली हुई स्त्रावी ग्रंथियां भी पाई जाती हैं पत्तियां सरल प्रकार की होती हैं यह निचले भाग में अभिमुख कम से जमी होती है तथा इसके कैनर दंतुर होते हैं
ऊपरी भाग की पत्तियां सरल भालाकार आयताकार अथवा रेखाकर होती हैं तथा एकांतर क्रम में जमी होती हैं पुष्प 1 से 1.5 इंच तक लंबे स्वत वर्ण लिए हुए बैगनी रमेश तथा अथवा पीली बिंदुओं से युक्त होते हैं
यह अधोमुखी अथवा तिर्यक मुख होते हैं। फल कैप्सूल प्रकार का या फली के रूप में होता है इसका स्फूतन कोणों से होता है प्रत्येक फल में अनेक छोटे बीज होते हैं यह काले, लाल अथवा श्वेत वर्ण के होते हैं
इन्हीं बीजों से संपीडन द्वारा तेल निकाला जाता है काले तिलों से प्राप्त तेल औषधि हेतु श्रेष्ठ होता है तिल के तेल में मुख्यतः तथा लाईनोलिक अमल होते हैं
इसके अतिरिक्त में आर्केडिक अमल, स्ट्रिक अमल, पामिटिक अमल, तथा कुछ ग्लिसराइड्स पाए जाते हैं।
तिल के तेल का औषधीय महत्व -
तिल के तेल का महत्व प्राचीन काल से ही रोग चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष रहा है प्राकृतिक जड़ी बूटियां पर आधारित चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद में तिल के तेल को अनेक रोगों में अत्यंत उपयोगी पाया गया है
इसके साथ-साथ तिल का तेल शारीरिक ऊर्जा संवर्धन में भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है अधिकांश व्यक्ति किसी न किसी रूप में तिल के तेल का प्रयोग करते हैं
यहां पर औषधि रूप में तिल के तेल का महत्व इस बारे में बताया जा रहा है -
तिल का तेल मर्द के इन्द्रियों में लगाने के फायदे -
जिन द्रव्यों का उपयोग शारीरिक ऊर्जा बढ़ाने के लिए किया जाता है वाजीकरण इसी को कहते हैं इस हेतु एक प्रयोग इस प्रकार किया जा सकता है
200 ग्राम तिल के तेल में 30 ग्राम के लगभग भटकटया अन्य नाम छोटी बुरी रेगनी के फलों को पीस कर उबाले प्राप्त उबालने के पश्चात तेल को छानकर सीसी में भरकर रख ले इस तेल से लिंग का मर्दन करने से वाजीकरण होता है इस प्रयोग के परिणाम स्वरुप लिंग का शक्त भी होता है तथा उसके आकार में भी वृद्धि होती है।
स्तन कठोर हेतु -
यह प्रयोग स्त्रियों के लिए तंत्र लाभदायक है इसके लिए बराबर बराबर मात्रा में तिल का तेल तथा अरंडी का तेल लेकर भली प्रकार से मालिश करने से वह लटकते नहीं है बल्कि पर्याप्त कड़े हो जाते हैं।
कीड़े लगे हुए दांतों पर -
दांतों में कीड़े लग जाने की स्थिति में थोड़े से तिल के तेल को हथेली पर लेकर उसमें पिसी हुई हल्दी तथा एक चुटकी भर नमक मिला दे
इस मिश्रण को अंगुली की सहायता से दांतों पर लगाए आवश्यक हो तो मंजन के बाद करें ऐसा नित्य करने से दांतों के कीड़े समाप्त होते हैं तथा उनकी वृद्धि भी रुक जाती है।
अर्श बवासीर रोग में -
अर्श रोग हो जाने के स्थिति में रोगी को रोज नित्य 2 से 3 तोला तिल को खूब चबा चबाकर खाना चाहिए
इसी प्रकार मल त्याग करने उपरांत गूदा में अंगुली के सहयता से चारों ओर तिल का तेल भली प्रकार से लगा देना चाहिए ऐसा करने से मल त्याग करने पर कष्ट नहीं होता तथा मस्से भी खत्म हो जाएगा।
वर्ण पर -
तिल के तेल में थोड़ा सा आटा, हल्दी तथा प्याज को गर्म करके वार्नो पर लगाने से अथवा खाली तिल तेल लगा कर धूप दिखाने से भी ठीक हो जाता है।
मोच आने पर -
मोच अथवा हाथ पैर में चोट के कारण सूजन आने पर तिल के तेल में थोड़ा सा गुड़, आटा, लहसुन, हल्दी, प्याज इन पदार्थों को भली प्रकार गर्म करके बाधने पर पर्याप्त आराम होता है।
अधिक एवं बार-बार मूत्र आने पर -
यह बहुत बड़ी समस्या है इसमें या तो अधिक मात्रा में मूत्र आता है अथवा थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बार-बार आता है
इस समस्या को दूर करने के लिए नित्य तिल को 1 से 2 टोला मात्रा को भली प्रकार चबा चबाकर सेवन करने से अथवा 2-4 दिनों तक 1-1 चम्मच भर तिल के तेल का सेवन करने से लाभ होता है ध्यान रहे कि अधिक समय तक तिल के तेल का सेवन आमाशय के लिए हितकर नहीं है।
तिल के तेल का विशेष प्रयोग -
तिल के तेल की सहायता से केसों के कल्याणर्थ एक अति उत्तम तेल बनाया जाता है
1. 100 ग्राम भृंगराज,
2. 50 ग्राम गुड़हल के फूल,
3. 50 ग्राम चंदन चूर्ण,
4. 150 ग्राम ताजा आंवला,
5. 20 ग्राम हाथी दांत का चूर्ण,
6. 50 ग्राम गुलाब की पंखुड़ियां,
7. 20 ग्राम इंद्राणी के बीच,
8. 50 ग्राम अमरबेल,
इन सबको पीस ले अब इसमें 500 ग्राम तिल का तेल मिलाकर इस मिश्रण को इतना पकाए की संपूर्ण पानी जल जाए फिर इस तेल को उतार कर इसमें तीन-चार नींबू का रस मिला दे इसके पश्चात इसमें थोड़ा सा कपूर और पिपरमेंट मिलाए और सीसी में भरकर रख ले इस तेल को बालों में नित्य प्रयोग करने से निम्नांकित लाभ होते हैं -
1. बाल असमय पकते नहीं
2. वह भंवरे के समान काले रहते हैं
3. रूसी नहीं होती है
4. केस लंबे होते है
तिल के तेल के चमत्कारिक प्रयोग -
यह एक छोटा सा हवन प्रयोग है किंतु इसके लाभ बहुत अधिक हैं विभिन्न हवन आदि काले तिल का प्रयोग एक अनिवार्यता है
आप अपने घर पर स्वयं ही छोटे स्तर पर हवन करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं या हवन प्रयोग अत्यंत सरल है घर में एक कंडे का छोटा सा टुकड़ा जला ले
इस जलते हुए टुकड़े पर तिल का तेल घी कपूर तथा कच्चे चावल की थोड़ी-थोड़ी मात्रा आहुति के रूप में डालें इस अभियान के नित्य अथवा सप्ताह में एक बार करने से घर में सुख शांति बनी रहती है
किसी भी प्रकार का भूत दोष उत्पन्न नहीं होता है घर के सदस्य नज़र पीड़ा आज सुरक्षित रहते हैं तथा घर में रहने वाले निरोग रहते हैं।
1. बहुत प्रयास करने के उपरांत भी जिस कन्या का विवाह नहीं हो रहा हो उसके शीघ्र विवाह के लिए यह प्रयोगाथांत उपयोगी है
ऐसी कन्या के विवाह के लिए उसके शेनकक्ष में तिल के तेल में थोड़ी सी जावित्री मिलाकर रख दे नित्य रूई कि एक फूल बत्ती बनाकर इस तेल में डुबोकर अलग दीपक पर रखकर जलाएं
सुबह से लेकर शाम तक कभी भी 5 से 7 मिनट के लिए इस दीपक को जलाने से उसे कन्या का शीघ्र विवाह हो जाता है अथवा विवाह की बात चलने लगती है।
2. शनि के कुप्रभाव से पीड़ित व्यक्ति को शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए आगे लिखा प्रयोग अवश्य करना चाहिए
ऐसे लोग सरसों का तेल और तिल का तेल बराबर बराबर मात्रा में लेकर मिला ले उसमें 7 - 8 लौंग डाल दे यदि यह मिश्रण 100 ग्राम है तो उसमें पांच लौंग तोड़कर डाल दे
इस मिश्रण से रूई से बनी फूल बत्ती को डुबोकर निकाल ले तथा उसे किसी पीतल अथवा स्टील के दीपक पर रखकर जलाएं इतना तेल से जो कि उसे फूल बत्ती ने सूखा है यह दीपक 7 मिनट तक जलेगा इस दीपक को अपने शेन कक्ष में नित्य कुछ दिन तक जलाएं ऐसा करने से शनि का आपको प्रभाव समाप्त होता है शुभ में वृद्धि होती है।
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