महाविषगर्भ तेल के फायदे एवं बनाने की उत्तम विधि.....
सभी प्रकार के वात रोगों अर्थात वातशूल का काल है यह तेल | यह आयुर्वेद का शास्त्रोक्त तेल है जिसका उपयोग मुख्यत: जोड़ो के दर्द, गठिया, साइटिका, सुजन, संधिवात, एकांगवात एवं सभी प्रकार के दर्द में किया जाता है |
इस आयुर्वेदिक तेल का निर्माण लगभग 30 से अधिक आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियों के सहयोग से किया जाता है | यह तेल बाह्य रूप से मालिश के लिए उपयोग में लिया जाता है |
दर्द वाले स्थान पर निरंतर मालिश से दर्द से आराम मिलता है | चलिए अब जानते है इस तेल के निर्माण में आने वाले घटक द्रव्यों अर्थात जड़ी – बूटियों के बारे में | यहाँ हमने महाविषगर्भ तेल के निर्माण में काम आने वाली जड़ी – बूटियों की सूचि उपलब्ध करवाई है |
महाविषगर्भ तेल बनाने की विधि :
समस्त वात रोगों को नाश करने वाला सर्वोत्तम तेल है, विषगर्भ तेल।
इस तेल को सिद्ध करने हेतु पुष्कर मूल, सोंठ, बच, भारंगी, सातावर, मंजीत, हल्दी, लहसुन, वायविडिंग, देवदारू, अश्वगंधा, अजमोद, मिर्च, पिपला मूल, खरिटी, गंध प्रासरणी, सहजन , गिलोय, हाऊवेर, हरण, दसमुल, संभालु, मेथी, पाठ, कोंच बीज, इंद्रायण की जड़ तथा सोंफ इन सभी को 20-20 ग्राम मात्रा लें।
इनका जितना वजन बने उससे चार गुना जल लेकर उसमे ओटाये। जब तीन हिस्सा पानी जल जाए और चौथाई हिस्सा पानी शेष रहे तब इसे उतार लें।
इसमें 250 ग्राम मूंगफली तेल, 250 ग्राम अरंडी का तेल तथा 250 ग्राम सरसो का तेल। इसी के साथ इसमें धतूरा, अरंडी, भांगरा तथा आंकड़े का 250-250 ग्राम रस मिलाएं।
इसके उपरांत गाय के गोबर में थोड़ा सा जल घोल कर कपड़े की सहायता से गार कर निकाल लें। गोबर 250 ग्राम रस मिलाएं इस संपूर्ण पदार्थ को गर्म करे जब सम्पूर्ण जल तत्व उड़ जाए तब यह तेल सिद्ध हो जाता है।
तत्व पश्चात इसे छान कर इसमें 15 ग्राम संखिया मिला कर रख दे। यह तेल तैयार है। उपरोक्त वर्णित मात्रा के अनुपात के आधार पर तेल बनाने हेतु औषध की मात्रा कम या अधिक उसी अनुपात में लिया जा सकता है ध्यान रहे की जब भी इसका उपयोग करे उस प्रियोग के उपरांत इसकी मालिश करने वाला आपने हाथो को भलीभांति साबुन से धो ले। इस तेल के अनेक औषध महत्व है।
जिनमे से कुछ प्रमुख निम्न है
नोट
इस तेल की मालिश करने से संधिगति वायु का नास होता है जिसके कारण संधियों की पीड़ा समाप्त होती है ।
( वैद्य राहुल गुप्ता )
8849071641
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